रविवार, 2 जून 2024

 हम सभी ने अकबर के नौ रत्नों के बारे में सुना है , जिसमें कि हम ज्यादातर बीरबल के नाम से परिचित हैं, और वो भी केवल इसलिए कि वे अनेक किस्सों  कहानियों में अपनी हाजिरजवाबी के लिए प्रसिद्ध हैं, अकबर बीरबल के किस्से व अकबर बीरबल के चुटकुले नाम से हम कई किस्से पढ़ते आए हैं  इस प्रकार उनकी छवि एक हाजिर जवाब व मजाकिया अंदाज वाले शख्स के रूप में हमारे जहाँ में बसी हुयी है,लेकिन ऐसा नहीं है, आज हम बात करेंगे कि सभी नौ रत्नों की क्या खूबियाँ थी और उनकी विशेसज्ञता क्या थी और क्यों उन्हें नवरत्न कहा जाता है,

        दरअसल अकबर बहुत बुद्धिमान प्रशासक  था, और वह हर धर्म के बुद्धिजीवियों और ज्ञानियों को बहुत महत्व देता था और उनका सम्मान करता था, और इन्हें अपने दरबार में सम्मानित पद देता था, यूँ तो अकबर के दरबार में एक से बढ़कर एक बुद्धिजीवी थे, परंतु कुछ ऐसे थे जिनपर अकबर बहुत विश्वाश करता था और उनकी बुद्धिजीविता  तथा ज्ञान का कायल था,कुछ भी निर्णय लेने से पहले वह इनसे जरूर विचार विमर्श करता था , ये कुल मिलाकर नौ लोग थे ,इसलिए अकबर ने इन्हें नवरत्न की उपाधि से सम्मानित किया |  इसलिए ये नवरत्न कहलाते हैं |       

  सम्राट अकबर के दरबार में जो नवरत्न थे उनके नाम इस प्रकार हैं -

1 - अबुल फजल 

2-  फैजी 

3 - तानसेन 

4 - बीरबल 

5 - राजा टोडरमल 

6 - राजा मान सिंह 

7 - अब्दुल रहीम  खानखाना 

8 - हकीम हुक्काम 

9 - मुल्ला दो प्याजा 

1 - अबुल फजल  -  अबुल फजल बहुत ज्ञानी व कवि और लेखक होने के साथ-साथ बहादुर सिपाही भी थे उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें अकबरनामा  और आईने अकबरी  बहुत प्रसिद्ध हैं, अकबर को अधिकतर युद्धों में अबुल फजल की कुशल रणनीति के कारण ही सफलता मिली  इनमें आसिरगढ़ और राजमना  का युद्ध प्रमुख हैं,समय के साथ-साथ  उनके अकबर से संबंध गहराते चले गए और वे अकबर के चहेते विश्वासपात्र बन गए लेकिन अकबर का पुत्र शहजादा सलीम उन्हें पसंद नहीं करता था, कहा जाता है कि सलीम ने ही अबुल फजल की हत्या करवायी थी, 

2 - फैजी -   अकबर के नव रत्नों में फैजी का प्रमुख स्थान है, वे अबुल फजल के भाई थे  वे अपने समय के प्रतिष्ठित विद्वान थे,और उन्हों ने फारसी, अरबी  तथा संस्कृत में गहरी विशेषज्ञता प्राप्त की थी, उन्होंने इन भाषाओं में कई गरणरहों का अनुवाद भी किया था,उनकी कविताएं उनकी प्रतिभा तथा साहित्यिक प्रतिभा का प्रमाण हैं, उनकी कविताओं में सूफी तत्वों का समावेश है,इन्होंने अकबर के दरबार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वे अकबर के राजनीतिक सलाहकार थे, वे अकबर की धार्मिक सहिष्णुता और दीन -ए- इलाही के समर्थक थे,वे विभिन्न धर्मों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते थे, फैजी ने संस्कृत के कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया था,जिसमें महाभारत का अनुवाद प्रमुख रूप से शामिल है,

             फैजी का योगदान केवल साहित्य और कविता तक ही सीमित नहीं था बल्कि वे अकबर के साम्राज्य के सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास  में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे, उनकी विद्वता और साहित्यिक कृतियों ने मुगल दरबार की शान में चार चाँद लगा दिए थे|

3 - तानसेन -तानसेन, जिन्हें मियां तानसेन के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे महान संगीतकारों में से एक थे। वे अकबर के दरबार के नौ रत्नों में से एक थे। उनका जन्म 1506 में ग्वालियर के पास बेहट गाँव में हुआ था। उनके बचपन का नाम रामतनु पांडे था। तानसेन का संगीत के प्रति प्रेम और उनकी अद्वितीय प्रतिभा बचपन में ही दिखाई देने लगी थी।तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास थे, जो वृंदावन के एक प्रसिद्ध संत और संगीतज्ञ थे। हरिदास के निर्देशन में तानसेन ने संगीत के गुर सीखे और धीरे-धीरे एक कुशल गायक और वादक बन गए।

तानसेन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए। उन्होंने कई नए रागों की रचना की, जैसे मियाँ की मल्हार, मियाँ की तोड़ी, दरबारी कान्हड़ा, और राग हंसध्वनि। तानसेन के गायन की शैली को "ध्रुपद" कहा जाता था, जो उस समय की प्रमुख शास्त्रीय गायकी शैली थी। तानसेन ने कई ध्रुपद बंदिशें रचीं, जो आज भी प्रचलित हैं।तानसेन को अकबर के दरबार में महत्वपूर्ण स्थान मिला था। कहा जाता है कि तानसेन की आवाज में जादू था और वे जब गाते थे तो श्रोताओं पर गहरा प्रभाव छोड़ते थे। अकबर तानसेन की प्रतिभा से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने उन्हें अपने दरबार के नौ रत्नों में शामिल किया।तानसेन के बारे में कई प्रसिद्ध कथाएं भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि जब तानसेन राग दीपक गाते थे, तो दीपक स्वयं जल उठते थे, और राग मेघ मल्हार गाने से वर्षा हो जाती थी। हालांकि, ये कथाएं उनके संगीत की शक्ति को दर्शाने के लिए कही जाती हैं।तानसेन का निधन 1586 में हुआ था। उनकी समाधि ग्वालियर में है, जहाँ आज भी संगीत प्रेमी उनके सम्मान में समारोह आयोजित करते हैं।

तानसेन का योगदान भारतीय संगीत के इतिहास में अमूल्य है। उनकी संगीत साधना और रचनाएँ आज भी संगीतकारों और श्रोताओं को प्रेरणा देती हैं। उनकी ध्रुपद शैली, रागों की रचनाएँ और संगीत में नवाचार भारतीय शास्त्रीय संगीत की धरोहर हैं। 

4 - बीरबल -  बीरबल, जिनका वास्तविक नाम महेश दास था, अकबर के नौ रत्नों में से एक थे और वे अकबर के दरबार के प्रमुख मंत्री थे। बीरबल अपनी बुद्धिमत्ता, हाजिरजवाबी और हास्य के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अकबर के दरबार में 1556 से 1586 तक सेवा की। बीरबल की मुख्य जिम्मेदारियों में राजकाज के महत्वपूर्ण मामलों में सलाह देना और जनता के विवादों को सुलझाना शामिल था। बीरबल का जन्म 1528 में सिद्दी, कालपी, उत्तर प्रदेश में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कहा जाता है कि उनकी बुद्धिमत्ता और काव्य कला ने अकबर को प्रभावित किया, और इसीलिए उन्हें दरबार में शामिल किया गया। अकबर ने उन्हें 'बीरबल' की उपाधि दी  थी  बीरबल को 'कवि राज' और 'राजा' जैसे खिताब भी दिए गए थे। उन्हें 'वकील-ए-दार' की उपाधि भी मिली थी, जो एक उच्च पद था। बीरबल की कई कहानियाँ भारतीय लोककथाओं का हिस्सा बन गई हैं। इनमें वे अकबर के प्रश्नों का उत्तर बड़ी चतुराई और समझदारी से देते हैं। ऐसी कहानियाँ आज भी बच्चों और बड़ों में बहुत लोकप्रिय हैं।बीरबल की हाजिरजवाबी और तर्कशक्ति के कारण वे जनता और दरबारियों के बीच लोकप्रिय थे। वे कई जटिल मामलों को सरलता से सुलझा देते थे।


1586 में एक विद्रोह को दबाने के दौरान बीरबल की मृत्यु हो गई। यह घटना उत्तर-पश्चिमी भारत के स्वात घाटी क्षेत्र में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद अकबर को काफी दुःख हुआ था।


बीरबल के बुद्धिमान उत्तर और चतुराई भरी कहानियाँ आज भी भारतीय लोककथाओं और साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी कहानियाँ नैतिक शिक्षा और मनोरंजन का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती हैं। बीरबल का नाम सदियों से लोगों की स्मृतियों में उनके व्यावहारिक ज्ञान और हास्यबुद्धि के लिए जीवित है।

बीरबल न केवल अकबर के लिए एक मूल्यवान सलाहकार थे, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति और साहित्य में एक स्थायी स्थान बना लिया है। उनकी कहानियाँ आज भी लोगों को हंसने और सोचने पर मजबूर करती हैं।

5 - राजा  टोडरमल - राजा टोडरमल अकबर के नौ रत्नों में से एक थे और उन्होंने मुग़ल साम्राज्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। राजा टोडरमल का पूरा नाम टोडरमल त्रिपाठी था। वे एक महान वित्त मंत्री और प्रशासनिक सुधारक थे। उनके मुख्य योगदानों में से एक भूमि राजस्व प्रणाली का सुधार था, जिसे टोडरमल बंदोबस्त के नाम से जाना जाता है। टोडरमल ने भूमि राजस्व प्रणाली को संगठित और मानकीकृत किया। उन्होंने भूमि की माप और वर्गीकरण के आधार पर कर निर्धारण का काम किया। इससे किसानों को निश्चित और पूर्व निर्धारित करों का भुगतान करने में सहूलियत हुई।

  1. टोडरमल ने 'जरीब' नामक माप प्रणाली का परिचय दिया। यह एक चेन प्रणाली थी जिसका उपयोग भूमि की सही माप और सर्वेक्षण के लिए किया गया था।टोडरमल ने भूमि कर को फसल की उपज के आधार पर निर्धारित किया। उन्होंने विभिन्न फसलों के लिए अलग-अलग कर दरें लागू कीं, जिससे कर प्रणाली अधिक न्यायसंगत हो गई।

  2.  टोडरमल ने किसानों के कल्याण के लिए कई नीतियाँ बनाई। उन्होंने किसानों को बीज और अन्य कृषि उपकरणों की आपूर्ति सुनिश्चित की और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार के उपाय किए।

  3. टोडरमल ने राजस्व के दस्तावेजों को सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाया। उन्होंने कर संग्रहण की प्रक्रिया को लिखित रूप में संगठित किया, जिससे भ्रष्टाचार में कमी आई।

राजा टोडरमल की इन सुधारों ने मुग़ल साम्राज्य के राजस्व को स्थिर और बढ़ावा दिया। वे अपने समय के सबसे कुशल और प्रभावी प्रशासकों में से एक माने जाते थे। उनके द्वारा किए गए सुधारों का प्रभाव अकबर के शासनकाल के बाद भी लंबे समय तक महसूस किया गया

6 - राजा मान सिंह - अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा मान सिंह (राजा मान सिंह प्रथम) एक प्रमुख राजपूत राजा थे, जो आमेर (अब जयपुर) के राजा थे। उनका जन्म 21 दिसंबर 1550 को हुआ था और वे आमेर के राजा भारमल के पुत्र थे। राजा मान सिंह अकबर के दरबार में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे और उन्होंने मुगल साम्राज्य के विस्तार और सुदृढ़ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहाँ उनके बारे में कुछ मुख्य बिंदु दिए जा रहे हैं:

  1. : राजा मान सिंह एक उत्कृष्ट योद्धा और रणनीतिकार थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया, जैसे कि हल्दीघाटी का युद्ध (1576) और काबुल अभियान। उन्होंने अकबर के अधीन कई क्षेत्रों में शासन किया और कई सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया।

  2.  मान सिंह ने राजपूतों और मुगलों के बीच संबंधों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। उनके पिता राजा भारमल ने सबसे पहले अकबर के साथ मित्रता की शुरुआत की, और मान सिंह ने इस संबंध को और प्रगाढ़ किया। उनकी बहन जोधाबाई (मरियम-उज-ज़मानी) अकबर की पत्नी थीं।

  3. राजा मान सिंह ने आमेर और उसके आसपास के क्षेत्रों में कई किले और महल बनवाए। उन्होंने आमेर किले के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें अद्भुत वास्तुकला और कला का नमूना देखा जा सकता है।

  4.  राजा मान सिंह अकबर के दरबार के प्रमुख नवरत्नों में से एक थे। वे न केवल एक कुशल योद्धा थे बल्कि एक योग्य प्रशासक और अकबर के विश्वसनीय सलाहकार भी थे।

  5.  राजा मान सिंह का विवाह कई रानियों से हुआ था और उनके कई पुत्र और पुत्रियाँ थीं। उनके पुत्र, राजा भगवंत दास और उनके पोते मिर्जा राजा जय सिंह प्रथम, भी महत्वपूर्ण राजपूत शासक बने और मुगल साम्राज्य में उच्च पदों पर रहे।

  6. राजा मान सिंह का जीवन और उनकी उपलब्धियाँ मुगल और राजपूत इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनकी बहादुरी, कूटनीति और अकबर के प्रति निष्ठा ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बना दिया।

    7 - अब्दुल रहीम खानखाना - 

    अब्दुल रहीम खानखाना, जिन्हें आमतौर पर रहीम के नाम से जाना जाता है, मुगल सम्राट अकबर के नौ रत्नों में से एक थे। उनका जन्म 17 दिसम्बर 1556 को लाहौर में हुआ था। रहीम एक महान कवि, विद्वान और सेनापति थे। उनके पिता, बैरम खान, अकबर के राज्य के प्रमुख संरक्षक और एक प्रभावशाली मुगल जनरल थे।


    1. रहीम की कविता में सादगी और गंभीरता होती थी। वे दोहों के लिए प्रसिद्ध थे, जिनमें उन्होंने जीवन, प्रेम, और नैतिकता पर गहरा संदेश दिया। उनके दोहे आज भी भारतीय साहित्य और संस्कृति में बहुत महत्व रखते हैं।

    2.  रहीम ने संस्कृत के कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया, जिससे भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में मदद मिली।

    3.  रहीम ने कई महत्वपूर्ण सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया और मुगल सेना में उच्च पदों पर रहे। वे अकबर के विश्वस्त सलाहकारों में से एक थे और राज्य की प्रशासनिक और सैन्य गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाते थे।

    4. रहीम ने विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के प्रति गहरी समझ और सम्मान दिखाया। वे हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में समान रूप से सम्मानित थे।

    5. रहीम ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और सैन्य जिम्मेदारियां निभाईं। अकबर के शासनकाल में वे प्रमुख सैन्य अभियानों का हिस्सा बने और उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी गईं।

    रहीम के प्रसिद्ध दोहे:

    रहीम के दोहे उनके जीवन के अनुभवों और उनकी धार्मिक और नैतिक मान्यताओं का प्रतिबिंब हैं। कुछ प्रसिद्ध दोहे निम्नलिखित हैं-

    रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय॥ रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाएँ। उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥

    इन दोहों में रहीम ने प्रेम और रिश्तों की नाजुकता, और आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की महत्ता को सरल और प्रभावी भाषा में व्यक्त किया है।अब्दुल रहीम खानखाना न केवल अकबर के दरबार के एक महत्वपूर्ण सदस्य थे, बल्कि वे एक महान कवि और विचारक भी थे। उनकी साहित्यिक और सैन्य सेवाएं मुगल इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। रहीम की रचनाएँ आज भी प्रेरणा और शिक्षा का स्रोत बनी हुई हैं।

    8 - हकीम हुक्काम -  

    अकबर के नौ रत्नों में से एक, हकीम हुक्काम, जिन्हें हकीम हुमाम के नाम से भी जाना जाता है, मुगल दरबार में एक महत्वपूर्ण और प्रमुख व्यक्ति थे। उनका पूरा नाम हकीम अबुल फतह गिलानी था और वे एक प्रसिद्ध चिकित्सक (हकीम) और विद्वान थे।


    1. हकीम हुमाम एक उच्च स्तरीय चिकित्सक थे। वे अपने चिकित्सा ज्ञान और कुशलता के कारण दरबार में बहुत प्रतिष्ठित थे। अकबर और उनके परिवार के स्वास्थ्य की देखभाल का जिम्मा हकीम हुमाम पर था।

    2. हकीम हुमाम केवल चिकित्सा में ही नहीं, बल्कि अन्य विज्ञानों में भी निपुण थे। उनकी विद्वता के कारण वे अकबर के नौ रत्नों में शामिल किए गए थे।

    3. हकीम हुमाम का अकबर के दरबार में बड़ा प्रभाव था। वे अकबर के सलाहकारों में से एक थे और विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनकी राय ली जाती थी।

    4.  चिकित्सक होने के अलावा, हकीम हुमाम ने विभिन्न प्रशासनिक भूमिकाएँ भी निभाईं। वे अकबर के शासनकाल के दौरान महत्वपूर्ण प्रशासनिक कार्यों में भी शामिल थे।

    5.  हकीम हुमाम ने मुगल दरबार की सेवा में अपना जीवन व्यतीत किया और उनकी सेवा को बहुत सराहा गया। उनकी सेवाओं के कारण उन्हें दरबार में उच्च सम्मान प्राप्त था।

    हकीम हुमाम ने अपने ज्ञान, कौशल और सेवाओं के माध्यम से मुगल साम्राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। उनकी चिकित्सा और विद्वता के कारण वे अकबर के सबसे करीबी और विश्वासपात्र लोगों में से एक थे।

    9 - मुल्ला दो  प्याजा  - 

    अकबर के नौ रत्नों में से एक, मुल्ला दो प्याजा, एक प्रसिद्ध हास्य कलाकार और बुद्धिजीवी थे। उनका असली नाम अबुल हसन था, लेकिन उन्हें उनके हास्य और मजाकिया स्वभाव के कारण मुल्ला दो प्याजा कहा जाता था। उनके जीवन और कार्यों के बारे में कई कथाएँ और किस्से प्रचलित हैं, जो उनकी चतुराई और बुद्धिमत्ता को दर्शाते हैं।

    मुल्ला दो प्याजा को अकबर के दरबार में उनके बुद्धिमत्ता, हास्य, और सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण के कारण महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ था। उनके बारे में कहा जाता है कि वे अक्सर अपने हास्यपूर्ण और व्यंग्यात्मक वक्तव्यों से दरबार में मनोरंजन करते थे, साथ ही गंभीर मुद्दों पर अपनी गहरी सोच भी प्रस्तुत करते थे।

    मुल्ला दो प्याजा के बारे में कई प्रसिद्ध कहानियाँ हैं, जिनमें से कई उनके चतुराई और त्वरित बुद्धि को दर्शाती हैं। उनकी कहानियाँ भारतीय साहित्य और लोककथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उन्हें एक विदूषक के रूप में भी जाना जाता था, जो दरबार में अपनी चुटकियों और व्यंग्य से सभी को हंसाते थे और अकबर को भी प्रसन्न रखते थे।

    इन सभी गुणों के कारण मुल्ला दो प्याजा अकबर के नौ रत्नों में एक महत्वपूर्ण सदस्य थे और उनके योगदान को आज भी भारतीय इतिहास और साहित्य में सराहा जाता है।

           अकबर के नव रत्नों को उस समय का महत्वपूर्ण व प्रतिष्ठित व्यक्तियों में गिना जाता था मुगल काल की राजनीतिक ,सांस्कृतिक, व सामाजिक विचारधारा में इन नौ रत्नों का विशिष्ट योगदान है|


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